________________ Racecacecacaaca 000000000 नियुक्ति गावा-5 है (इसीलिए व्यञ्जनावग्रह के बिना ही, इससे अर्थावग्रह हो जाता है), अतः छूने मात्र से ही a शब्द-द्रव्यों के पुंज का ग्रहण हो जाता है। जो रूपित होता है (अर्थात् जो मूर्त रूप में " दृष्टिगोचर होता है), वह 'रूप' होता है। उस रूप को (नेत्र) देखती है या ग्रहण करती है या , उपलब्ध करती है- एक ही बात है। किन्तु वह (दृश्य रूप, नेत्र द्वारा) अस्पृष्ट, अनालिंगित : :(ही) रहता है, अर्थात् जिस तरह गंध आदि (घ्राण आदि इन्द्रियों के साथ) सम्बद्ध होते हैं, : उस तरह नहीं (अर्थात् 'गन्ध' आदि के स्वभाव के विपरीत 'रूप' का स्वभाव है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) तुशब्दस्त्वेवकारार्थः, स चावधारणे, रूपं पुनः पश्यति अस्पृष्टमेव, चक्षुषः . अप्राधकारित्वादिति भावार्थः। पुनःशब्दो विशेषणार्थः, किं विशिनष्टि? अस्पृष्टमपि , योग्यवदेशावस्थितम्, न पुनरयोग्यदेशावस्थितम् अमरलोकादि। गन्थ्यते घायत इति गन्धस्तम्, रस्यत इति रसस्तं च, स्पृश्यत इति स्पर्शस्तं च, . चन्दौ पूरणार्यो। 'बद्धस्पृष्टम् इति बद्धमाश्लिष्ठम्, नवशरावे तोयवदात्मप्रदेशैरात्मीकृतमित्यर्थः। , स्पृष्टं पूर्ववत् प्राकृतशैल्या चेत्थमुपन्यासो 'बद्धपुढे' ति, अर्थतस्तु स्पृष्टं च बद्धं च स्पृष्टबद्धम्। , (वृत्ति-हिन्दी-गाथा में पठित 'तु' शब्द 'एव' (ही) अर्थ को व्यक्त करता है, अर्थात्, अवधारण अर्थ में यह प्रयुक्त है। अतः वाक्य का तात्पर्य यह है कि नेत्र इन्द्रिय रूप को अस्पृष्ट / ही देखती है, क्योंकि वह 'अप्राप्यकारी' है। 'पुनः' यह शब्द विशेषणपरक (विशेषता, विशेष, बात को बताने वाला) है। (प्रश्न-) वह क्या विशेषित करता है? (उत्तर-) वह यह कि नेत्र a 'अस्पृष्ट' को विषय तो करता है, किन्तु वह तभी जब वह पदार्थ योग्य देश में (नेत्र की सीमा : a में) स्थित हो, न कि (दूर, अदृश्य) देवलोक आदि में (स्थित हो)। a जो सूंघा जाय, वह गंध है। जिसका रसन (आस्वादन) किया जाय, वह रस है। -जिसे छूआ (स्पर्श किया) जाय, वह स्पर्श है। (गाथा में दो बार पठित) 'च' शब्द गाथा के . - रिक्त पदों की पूर्ति करते हैं (अर्थात् उनका और कोई प्रयोजन नहीं है, अपितु एकमात्र : प्रयोजन यह है कि गाथा में उनके बिना जो अक्षर (या मात्रा) कम पड़ रहे थे, उनकी पूर्ति , होती है। 'बद्ध-स्पृष्ट' का अर्थ है-जो बद्ध है, यानी आश्रुिष्ट है, अर्थात् नये सकोरे (मिट्टी के : पात्र) में जैसे जल अपने आत्म-प्रदेशों से आत्मभूत हो जाता है, अन्दर समा जाता है, उसी " | तरह पदार्थ त्वगिन्द्रिय से सम्बद्ध हो जाता है। 'स्पृष्ट' का अर्थ पूर्ववत् है। प्राकृत-शैली के (r)neces0c82c83c808080808 3.3333333333388888888888888888888888888888888 59