________________
को सुनने की बजाय परमात्म भक्ति से ओतप्रोत सुंदर गीतों को.....सज्जनों के गुणगानों को सुनिये....कान पवित्र हो जायेंगे.....
इन सबसे खतरनाक है मन । यह सबका संचालक है....'मन एवं मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः' मन के जीते जीत है, मन के हारे हार।
हाँ, तो अपनी बात चल रही थी मतिज्ञान की....उपरोक्त पाँच इन्द्रियों और मन से जो ज्ञान यथार्थ रूप से होता है उसे मतिज्ञान कहते हैं और अयथार्थ रूप से होता है, उसे मतिअज्ञान कहते हैं। आगे के भेदों में भी यही समझ लेना । सम्यक्त्व सहित हो उसे ज्ञान कहते हैं और सम्यक्त्वरहित-मिथ्यात्व सहित हो उसे अज्ञान कहते हैं।
मतिज्ञान को रोकने वाला कर्म मतिज्ञानावरण कहलाता है। 2. श्रुतज्ञान और श्रुतज्ञानावरण ___शास्त्र पढ़ने से या शब्दों को सुनकर जिस अर्थ का ज्ञान होता है, उसे श्रुतज्ञान कहते हैं। ___ विशेषता :- मतिज्ञान से इसकी विशेषता यह है कि.....अमुक शब्दों को सुनने की बाद श्रवणेन्द्रिय से जो शब्दमात्र का ज्ञान होता है, उसे मतिज्ञान कहते हैं....क्योंकि जो व्यक्ति उस भाषा को नहीं जानता है, वह भी यह God शब्द है, ऐसा तो जान ही सकता है...मगर God शब्द अर्थ भगवान होता है, यह तो उस भाषा को जानने वाला ही समझ सकता है। इस शब्द का यह अर्थ होता है ऐसा जो उस भाषा के जानकार को ज्ञान होता है, उसे श्रुतज्ञान कहते हैं। (विस्तृत विवेचन विशेषावश्यक भाष्य टीका में उपलब्ध है) इस श्रुतज्ञान को रोकने वाला कर्म श्रुतज्ञानावरण है।
रेकर्म तेरी गति न्यारी...!! /81
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org