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________________ से होता है। आत्मा में कषाय का प्रमाण जितना ज्यादा होगा अर्थात् संक्लेशवाली आत्मा हो तो वह शुभ तीन आयुष्य सिवाय शुभ या अशुभ कर्मों की स्थिति बंध ज्यादा करती है। परन्तु रसबँध का यह नियम है कि संक्लेश ज्यादा हो तो जीव अशुभकर्म का रस ज्यादा बाँधता है और विशुद्धि ज्यादा हो तो शुभ कर्म का रस ज्यादा बाँधता है। विशुद्धि कम हो तो शुभ कर्म का रस कम बाँधता है। पोपा बाई का राज नहीं चलेगा ! जिन कर्मों को हमने किया है... बाँधा है...... उनका शुभाशुभ फल हमें ही भुगतना पड़ेगा..... तभी तो जोर-शोर से पुकार -पुकार कर सुनाया जाता है। 'बंध समय चित्त चेतीये रे उदये शो संताप ... ?' चूँकि यह कोई पोपा बाई का राज नहीं कि पाप करे कोई और भुगते कोई । कर्मसत्ता बलवान है। वह किसी को छोड़ती नहीं है। पोपाबाई के राज्य में अँधेरी नगरी के गंडूराजा के राज्य की तरह एक ही भाव में सब कुछ मिलता था। 'अँधेर नगरी गंडू राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा' जितना आटा लाओ उतनी मनपसन्द मिठाई ले जाओ। यह देख गुरु ने चेले को कहा- 'जहाँ गुण-अवगुण की परीक्षा नहीं वैसे राज्य में रहना कतई उचित नहीं, चल अभी का अभी।' चेले को भी जीभ ने दास बना लिया था। गुरु आज्ञा भंग करके भी वह वहीं पर रहने लगा । एक दिन हुआ यों कि एक चोर सेठ के घर की दीवार को तोड़कर अंदर घुसा, चोरी करके बाहर निकल ही रहा था कि दीवार ढह गई और वह मर गया। चोर की बुड्डी माँ सीधी पहुँची पोपाबाई रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 50 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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