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के राजदरबार में... शिकायत की कि 'मेरा बेटा मर गया, इसलिये मैं न्याय चाहती हूँ !'
पोपाबाई ने क्रमश: सेठ, मेमार, गार बनानेवाला, सेठ की लड़की, बाबाजी और अंत में जमाई को बुलवाया और कहा 'देखिये जमाईराज ! यह बात और है कि आप मेरे जमाईराज हैं, मगर आप अपराधी है...अत: आपको फाँसी का हुक्म होता है।'
जमाईराज तो सकपका गया...! 'कौन-सा अपराध ?'
'आप राजपथ पर घोड़े को तेजी से दौड़ा रहे थे...चपेट में न आ जाय, इसलिये बाबाजी जान बचाकर भागे....उनकी लंगोटी गिर गई....उन्हें ध्यान न रहा....सेठ की जवान लड़की यह दृश्य देख शरम के मारे एकदम से रूमझूम करती घर के भीतर घुस आई....गारा वाले का ध्यान उस लड़की की ओर गया....इसलिये पानी ज्यादा डल गया और गारा पतला बना.....इसलिये मेमार से दीवार की राजगीरी कच्ची हुई....सेठ की दीवार कची हुई...ढह गई...और उधर इसी कारण बुढ़िया ने अपना कमाऊ (?) बेटा गँवा दिया.....इस घटना का मूल है आपका बेफिकराई से राजपथ पर घोड़ा दौड़ाना ! इसीलिये आपको फाँसी पर चढ़ाया जाता है। चूँकि मेरे राज्य का कानून है जीव के बदले जीव जायेगा !!!' ... दामाद ने सोच लिया....'चलो....स्वीकार कर ले...दया
आयेगी तो मुझ पर ही कि बिटिया विधवा हो जायेगी। अत: सजा रद्द कर दो....' इस विचार से दामाद ने कहा- 'ठीक है मैं अपना अपराध कबूल करता हूँ....मुझे फाँसी पर लटका दीजिये !'
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!!/51
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