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के तल में जा बैठा है.... जैसे ही वह मिट्टी दूर होती है.... जीव रूपी बड़ा अपने आप ऊपर की ओर उठने लगता है और सिद्धशिला पर जा पहुँचता है। लोकाकाश की अंतिम रेखा तक चला जाता है.... उससे ऊपर वह जा नहीं सकता, चूँकि अलोकाकाश में गति में सहायक धर्मास्तिकाय नहीं है....। जीव वहीं स्थिर रहता है, क्योंकि कर्म हो तो ही भटकन है..... उन जीवों का तो कर्मनाश हो गया है, अत: भटकन भी नहीं होती..... ।
सहज प्रश्न
प्रश्न- लोक के अग्रभाग में समश्रेणि से सिद्ध की अनंती आत्माएँ 45 लाख योजन के उस सीमित क्षेत्र में रहते हैं ..... यह कैसे संभव हो ? आत्माएँ अनंत और रहने के लिये जगह एकदम
सीमित ?
उत्तर
आज के युग में ऐसे प्रश्न बेहूदे लगते हैं .... चूँकि विज्ञान ने एक प्रयोग-परीक्षण के द्वारा सिद्ध कर बताया है कि एक कमरा जितना लोहा तीन इंच जितनी जगह में समाया जा सकता है......
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फिर भी... उपर्युक्त प्रश्न का उत्तर शास्त्रीय ढंग से दिया जा
रहा है।
आत्मा जब मोक्ष में होती है, तब वह शरीर रहित होती है.... अत: घर्षण आदि का सवाल ही पैदा नहीं होता... इसीलिये अनंत आत्माएँ अपना अलग-अलग अस्तित्व बनाये रखते हैं और एक-दूसरे में एकमेक हो जाते हैं।
उदाहरण के तौर पर....एक कमरे में एक बल्ब जलाते हैं.... पूरा कमरा प्रकाश से नहा उठता है.... स्वीच ऑन कर दूसरा बल्ब
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 45
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