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________________ जलाते हैं.....उसका भी प्रकाश अपना अस्तित्व अलग बनाये रखता है, फिर भी पहले वाले प्रकाश में ही समा जाता है.... । इसी प्रकार पचासों बल्बों का प्रकाश उसी एक छोटे से कमरे में खूब आसानी से समा जाता है....कमरा जगमगा उठता है। सभी का अपना अस्तित्व बकायदा जिन्दा रहता है। चूँकि एक बल्ब बंद होते ही प्रकाश की जगमगाहट में फर्क नजर आता है, फिर भी समूह में हमें उसके भेद का ज्ञान नहीं हो पाता। उसी तरह प्रत्येक सिद्ध आत्मा का अलग अस्तित्व तो है ही फिर भी शरीर नहीं होने से अनंतों का समावेश उसी सीमित क्षेत्र में प्रकाश की तरह हो जाता है। 2. स्थितिबंध आत्मा के साथ कार्मणवर्गणा जुड़ती है और कर्मरूप बनती है...उसी समय उस कर्म की स्थिति भी निश्चित हो जाती. है....अर्थात् यदि उन कर्मों के बंध के बाद कोई नई बात न हो जाय (जिससे उस कर्म में किसी प्रकार का परिवर्तन हो) तो वह कर्म उस निश्चित काल तक आत्मा के साथ जुड़ा रहेगा....उसे स्थितिबंध कहते हैं। उदाहरण- भगवान महावीर के जीव ने तीसरे मरीची के भव में कुल मद से नीच गोत्र को बाँधा। वह कर्म सत्ताईसवें भव तक यानि एक कोटा-कोटि सागरोपम तक उनकी आत्मा के साथ रहा। जिस कर्म की जितनी स्थिति बाँधी हो, उतने काल तक वह कर्म आत्मा के साथ जुड़ा रहता है। जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति- ज्ञानावरण, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अंतराय कर्म का ज्यादा से ज्यादा स्थितिबंध तीस रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /46 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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