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के साथ आया रामलीला करने का विचार था । एक ड्रेस कम पड़ गई। सोचा....खैर, कोई बात नहीं..... यदि किसी दर्जी का सहकार मिल जाय । इधर-उधर तलाश की तो पता चला पूरे गाँव में एक ही दर्जी है। बहुरूपिया सीधा उसके पास पहुँच गया। ‘भैया ! आज रात को रामलीला करनी है, इसलिये मेहरबानी कर इस ड्रेस को यदि आप तुरन्त तैयार कर देते हो तो...' दर्जी सुबह-शाम सिलाई करता रहता था, फिर भी काम पूरा नहीं होता था। काम के बोझ से वह टेन्शन में था, अत: कुछ अंटशंट बक गया । बहुरूपिया का माथा ठनका। दोनों के बीच बात अड़ गई । बहुरूपिये ने आवेश में कह दिया 'देख लेना मैं बहुरूपिया हूँ, सबक ऐसा सिखाऊँगा कि जिन्दगी भर बच्चू याद करेगा कि सेर के ऊपर सवा सेर भी होता है।'
यह सुनना था कि हमेंशा हिमालय के बर्फ जैसे रहने वाले दर्जी के दिमाग में भी क्रोध रूपी लावा उबलने लगा.....उसका खून खौल उठा और उसने स्पष्ट शब्दों में सुना दिया 'जा... जा अबे ! तू मुझे क्या कर सकता है....? यह मेरा गाँव है.... तू क्या.... तेरी औकात क्या ? क्या तू मुझे गाँव से बाहर निकाल देगा, जो इतनी डाँट-डपट कर रहा है ?'
बहुरूपिये ने आवेश में मूछों पर ताव दे कर कह दिया....' यदि मैं तुझे गाँव के बाहर न निकाल दूँ तो मैं बहुरूपिया नहीं...!' ऐसा "कहकर वह बाहर निकल गया और सीधा अपने डेरे- तंबू पर पहुँचा । बहुरूपिये ने अपनी मंडली को बुलाकर कहा 'दोस्तों ! रामलीला तो हमने बहुत बार की है और भी करते ही रहेंगे... मगर, आज रात को लीक से परे हटकर कुछ नया कर दिखाने की मंशा है... रामलीला के बदले आज दर्जीलीला करेंगे। बात सभी को जँच गई।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 31
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