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शेष चार वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र नामक कर्म अघाति कहलाते हैं। चूँकि ये मूलगुणों का नाश नहीं करते हैं।
घातिकर्मों में भी सबसे खतरनाक कर्म है मोहनीय कर्म । चूँकि वही तो हमें क्रोध करवाता है, मान करवाता है, हँसाता है और रूलाता भी है। जिस प्रकार बहुरूपिया नाट्यकलाकार हमें अपनी कला के बाहुपाश में जकड़ देता है... जिससे कभी हम भी खलनायक - विलेन को देखकर क्रोध से धुँआ-पूँआ हो जाते हैं... तो कभी किसी की हास्योक्ति या सार्थक व्यंग्य पर हँसकर लोट-पोट हो जाते हैं... और कभी-कभार सीन इतना करूण हो पड़ता है कि हम बरबस रो उठते हैं ... !
राजा भर्तृहरि को देखकर लोग हिमालय की ओर चल पड़े.... और अभी - अभी तो 'एक दूजे के लिए' देखकर कितने ही नौजवान आत्महत्या कर बैठे.... रेल की पटरियों के नीचे कट गये...साइनेड पॉइजन खाकर मर गये... बेचारे निर्देशक को तो स्वप्न में भी ख्याल नहीं था कि लोग इस तरह दृश्यों को सच मान लेंगे.....हीरों के हर दिन तीन शो देखने वाली नेपाल की उस शादीशुदा युवती की हालत चिंताजनक बन पड़ी थी, क्योंकि वह सचमुच ही जेकी श्राफ को अपना हीरो मानने लगी थी....!
निर्देशकों में और बहुरूपियों में जैसे सभा को वश करने की ताकत है वैसे ही इस मोहनीय कर्म की ताकत भी गजब है, चूँकि यह कर्म आत्मा को मनचाहे रूप से नचाता है, रूलाता है और हँसाता है।
दर्जी और बहुरूपिया
बहुत ही छोटा देहाती गाँव था। बहुरूपिया अपनी पूरी मंडली
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 30
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