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________________ 7. मनोवर्गणा श्वासोच्छ्वासवर्गणा से मनोवर्गणा में परमाणु अनंतगुने होते हैं और क्षेत्र असंख्यातगुण हीन । 1013x100=1015 परमाणु और 104 = 10=103 घन सेंटीमीटर क्षेत्र । उपयोग - जब हम किसी भी XYZ बात का विचार करते हैं... तब हमारी आत्मा इन्हीं मनोवर्गणा के पुद्गलों को लेकर 'मन' रूप से परावर्त्तित करती है। 8. कार्मणवर्गणा मनोवर्गणा से कार्मणवर्गणा में अनंतगुने परमाणु होते हैं, असंख्यात गुणहीन क्षेत्र होता है। 1015x100=1017 परमाणु और 103 = 10=102 घन सेंटीमीटर क्षेत्र । . उपयोग- मिथ्यात्व आदि कारणों से अपनी आत्मा कार्मण वर्गणा को ग्रहण कर कर्म रूप बनाती है। वर्गणाओं का विवेचन समाप्त हुआ। अब हम 'कर्म' के विविध आयामों को सरसरी नजरों से देखेंगे। कर्म कर्म के आठ भेद हैं- ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय - ये चारों घातिकर्म कहलाते हैं। घातिकर्म- जो कर्म आत्मा के मूलभूत गुण जैसे कि ज्ञान, दर्शन वीतरागभाव और अनंतशक्ति का घात करते हैं.... उसे घातिकर्म कहते हैं । रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 29 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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