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है । तदन्तर ली हुई उन समूची विद्युत तरंगों को डिटेक्टर ध्वनि तरंगों में रूपान्तरित कर देता है, तब जाकर कहीं बात बनती है और रेडियो यंत्र के लाउडस्पीकर से हमें अच्छे या बुरे समाचार सुनने को मिलते हैं।
ठीक इस ढाँचे में आत्मा के द्वारा कर्मग्रहण की प्रक्रिया ढली हुई है। पुद्गलास्तिकाय रूप ध्वनितरंगों को प्राकृतिक वातावरण रूपी ट्रांसमीटर कार्मणवर्गणा रूप विद्युत तरंगों में परावर्त्तित कर देता है और कार्मणवर्गणा भी ठीक विद्युत तरंगों की तरह विश्व के कोने-कोने में प्रसारित हो जाती है।
जब कोई एक आत्मा मिथ्यात्व अविरति प्रमाद कषाय योग रूपी कर्मबन्धन के स्टार्टरों को ऑन करके शरीर नामकर्म के उदय रूपी ट्यूनर से कार्मणवर्गणा रूपी विद्युत तरंगों को ग्रहण करती है तब....आत्मा रूपी डिटेक्टर उन कार्मणवर्गणा रूपी विद्युत तरंगों को कर्मरूपी ध्वनि तरंगों में बदल लेता है। तत्पश्चात् जब कर्म उदय में आता है.... तब सुख - दु:ख अनुभव की धरा पर अवतरित होते हैं।
(1) प्रसारण केन्द्र - ट्रांसमीटर द्वारा ध्वनितरंगों का विद्युततरंगों में परिवर्त्तन ।
अ. प्राकृतिक वातावरण द्वारा पुद्गलास्तिकाय का कार्मणवर्गणा . में परिवर्तन ।
(2) विश्व के कोने-कोने में फैलना- रेडियो स्टार्टर
ऑन ।
ब. विश्व में फैलना - मिथ्यात्व आदि कर्मबन्धन के कारणों से कर्मबन्ध |
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रे कर्म तेरी गति न्यारी...!!
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