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________________ . 6.वीर्यान्तरायकर्म जिस कर्म के उदय से जीव को शक्ति प्राप्त न हो और दुर्बलता आदि प्राप्त हो। सत्ता में 158 इस तरह सत्ता की अपेक्षा से ज्ञानावरणादि कर्मों के कुल भेद 5+9+2+28+4+103+2+5-158 हुए। उदय के 122 सत्ता में वर्णादि के 20 उपभेद गिने जाते हैं। किन्तु उदय में वर्ण, रस, गंध, रस और स्पर्श ये चार भेद ही गिने जाते हैं। अत: 20-4-16 भेद उदय में कम हो जाते हैं । तथा बंधनामकर्म के पन्द्रह भेद और संघातन नामकर्म के पाँच भेदों को शरीरनामकर्म में ही समावेश हो जाता है, अत: वे बीस भेद भी उदय की गिनती में नहीं आते हैं। अत: नामकर्म के 16+20=36 भेद उदय में अलग नहीं गिने जाते हैं, अर्थात् उदय की अपेक्षा से 158-36=122 कर्म के भेद होते हैं। बंध में कर्म के 120 भेद उदय में दर्शन मोहनीय कर्म के तीन भेद सम्यक्त्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय और मिथ्यात्वमोहनीय होते हैं। परन्तु बंध में मिथ्यात्वमोहनीय एक ही होता है....चूँकि सम्यक्त्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय बंधते नहीं है....वे तो मिथ्यात्वमोहनीय कर्म के रस की मात्रा घटाने से ही उत्पन्न होते हैं। सिर्फ मिथ्यात्वमोहनीय कर्म ही बंधता है। अत: उदय की अपेक्षा से बंध में दो भेद कम समझने चाहिये। 122-2=120 भेद रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /155 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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