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प्रवचन-12
अन्तराय कर्म के भेद और बंधहेतु
अन्तराय कर्म के मुख्य पाँच भेद है। 1.दानान्तरायकर्म
जो कर्म दान देने में विघ्न करें.....अर्थात् अपने पास दान देने योग्य चीज हो.......लेने वाला योग्य पात्र भी हो......मगर जिस कर्मोदय से दान देन की इच्छा ही न जगे....उसे दानान्तराय कहते हैं।
2. लाभान्तरायकर्म
जिस कर्म के उदय से जीव को इष्टवस्तु की प्राप्ति न हो। 3.भोगान्तरायकर्म
जिस कर्म के उदय से जीव एकबार भोगने योग्य अन्नादि योग्य वस्तु का भोग न कर सके। 4.उपभोगान्तरायकर्म
जिस कर्म के उदय से जीव अनेक बार भोगने योग्य अन्नादि योग्य वस्तु का भोग न कर सके। 5.उपभोगान्तरायकर्म
जिस कर्म के उदय से जीव अनेक बार भोगने = उपयोग में लाने योग्य वस्त्र-दागिने-मकान आदि का उपभोग न कर सकें।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /154
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