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लगे, तब नीचगोत्र का बँध पड़ गया। जिसका बैंक बेलेन्स सत्ताइसवें भव तक चुकाना पड़ा।
हरिकेशी मुनि ने पूर्व भव में जाति का अभिमान किया था, इसलिये चंडाल कुल में जन्म लेना पड़ा।
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PRINTHS
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /153
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