SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसी तरह चित्रक और संभूति (ब्रह्मदत्त चकवर्ती का जीव) .. भी चंडाल के रूप में थे, चूँकि पूर्वभव उन्होंने भी साधु बनकर मलीन वस्त्र आदि की दुगंछा की थी। 3. धर्म करने वालों की मजाक उड़ानी कोई भक्त धोती पहन कर परमात्मा की भक्ति करने जा रहा हो तो उसकी मजाक उड़ानी....उसकी खिल्ली उड़ानी। इस तरह . से नीचगोत्र का बँध होता है। 4. स्वप्रशंसा यह रोग टी. बी. की तरह घर-घर घुसपैठ कर चुका है। भले-भले नेता-अभिनेता, अमीर-गरीब, योगी-भोगी, आचार्यसाधु सब इसके शिकार हैं। इसके चंगुल में इस कदर फंस जाते हैं कि चाह कर भी निकल नहीं पाते। येन-केन-प्रकारेण स्वप्रशंसा करनी, यह आज के आदमी की एक आदत-सी बन गई है....मॉडर्न फैशन बन गई है। मगर याद रखिये....स्वप्रशंसा, आप बड़ाई करने से नीचगोत्र का बँध होता है। चूंकि उस वक्त आत्मा अभिमान में इतनी चूर हो जाती है कि मानो उस पर कोई भूत सवार हो बैठा हो। ___ हम इतिहास की ओर गौर करेंगे तो एक नहीं, ऐसे अनेक उदाहरण पायेंगे.. भगवान महावीर का जीव मरीचि ने कुल का अभिमान किया कि ओह ! मेरा कुल कितना महान....मेरे दादा प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ....' मेरे पिताजी प्रथम चक्रवर्ती (भरतचक्री), और मैं इसी भरत का प्रथम वासुदेव ! इस तरह अहंकार में आकर नाचने रे कर्म तेरी गति न्यारी.!! /152 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy