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उदय में एक सौ बाईस तो बंध में एक सौ बीस ।
अन्तराय कर्म के बंध हेतु 1. हिंसा करना।
2. प्रभु पूजा में विघ्न डालना (पूजा में पाप है ऐसा उपदेश देकर भक्तों को प्रभुपूजा न करने देना...इससे भयंकर अंतरायकर्म बंधता है।)
3. मंदिर-उपाश्रय-पाठशाला आदि में जा रहे जीवों को रोकना।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /156
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