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________________ 6. शुभ नामकर्म - जिस कर्म के उदय से जीव को नाभि के ऊपर के शुभ अवयव मिलते हैं.... जैसे कि सिर आदि । 7. सौभाग्य नामकर्म - जिस कर्म के उदय से जीव को औरों पर उपकार न करे तो भी स्वत: बहुमान - मान-सम्मान प्राप्त होता है । 8. सुस्वर नामकर्म - जिस कर्म के उदय से जीव को कोयलसी मधुर आवाज मिलती है। 9. आदेय नामकर्म - जिस कर्म के उदय से तर्क रहित वचन बोलने पर भी तुरन्त स्वीकार कर लें । 10. यश नामकर्म - जिस कर्म के उदय से यश मिलता है। 4. स्थावर दशक निम्नलिखित स्थावर आदि दस प्रकृतियों के समूह को स्थावरदशक कहते हैं । 1. स्थावर नामकर्म - जिस कर्म के उदय से जीव को स्थावरपना प्राप्त हो.....अर्थात् जिस कर्म के उदय से आने पर चाहे जितनी भी धूप पड़े या कष्ट आये जीव उस स्थान को छोड़कर नहीं जा सकता है। ऐसा शरीर मिलें जैसे पेड़-पौधे .... आदि । 2. सूक्ष्म नामकर्म - जिस कर्म के उदय से अनेक शरीर इकट्ठे होने पर भी आँखों से न दिखें। 3. अपर्याप्त नामकर्म जिस कर्म के उदय से जीव अपने योग्य आहारादि पर्याप्तियाँ पूर्ण न करें। 1 4. साधारण नामकर्म - जिस कर्म के उदय से अनंता जीवों के साथ एक शरीर में रहना पड़े। रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 142 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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