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5. अस्थिर नामकर्म- जिस कर्म के उदय से जीव को जीभ आदि अस्थिर अवयव मिलें।
6. अशुभ नामकर्म- जिस कर्म के उदय से जीव को अशुभ अवयव मिले।
7. दौर्भाग्य नामकर्म- जिस कर्म के उदय से लोगों पर उपकार किया हो तो भी लोगों के द्वारा अभिनन्दन न मिलें...लोग स्वागत आदि न करें। बल्कि लोग उससे कतराते फिरें....नाक-भौं सिकुड़ कर चले.....
8. दु:स्वर नामकर्म- जिस कर्म के उदय से जीव को कौएसा कर्कश कर्णकटु स्वर मिलें.......भैंसासुर या गधासुर में वह गाने लगे तो लोग मैदान छोड़कर भागने लग जाय। इतना अप्रिय लगे।
9. अनादेय नामकर्म- जिस कर्म के उदय से युक्तियुक्त वचन बोलने पर भी लोग उसका स्वीकार न करें।
10. अपयशनामकर्म- जिस कर्म के उदय से जीव को अच्छे काम करने पर भी अपयश मिलें।
शुभप्रकृतियों के बंधहेतु सरलता, रसगारव-ऋद्धिगारव और शातागारव का अभाव, लघुता, धर्मीपुरुषों को देख कर आनंदित होना, उनका स्वागत करना, परोपकार रसिकता, क्षमादि से शुभ नामकर्म बंधता है। शुभनामकर्म के उदय से जीव को अपनी शरीर की आकृति, रंग आदि सुंदर मिलते हैं।
रेकर्म तेरी गति न्यारी...!! /143
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