________________
प्रकाशमान ठंडा स्पर्श देने वाला शरीर मिलें.....जैसे कि- चंद्र के विमान में रहने वाला रत्नों का शरीर और जुगनू का शरीर....
7. निर्माण नामकर्म- जो कर्म उदय में आने पर शरीर के अंगोंपागों को सुथार की तरह उन-उन योग्य स्थानों पर बनाये....जैसे मुखमंडल के बीच नासिका...(सूंघने के लिये नाक यदि पीछे की ओर होती तो सारा मजा किरकिरा जाता।)
8. तीर्थंकर नामकर्म- जिस कर्म के उदय से जीव आठ महाप्रातिहार्ययुक्त तीर्थंकर बनें और धर्मशासन तीर्थ की स्थापना करें।
3.सदशक
निम्नलिखित त्रस आदि दस प्रकृतियों के समूह को त्रस दशक कहते हैं।
1. जस नामकर्म- जिस कर्म के उदय से त्रसपना प्राप्त हो। अर्थात् ऐसी काया मिले कि जिससे धूप से बचने के लिये स्वयं छांव में जा सके...जैसे कि चींटी, मनुष्य आदि।
2. बादर नामकर्म- जिस कर्म के उदय से जीव को आँखों से देखा जा सके, वैसा शरीर मिले।
3. पर्याप्ति नामकर्म- जिस कर्म के उदय से जीव अपने योग्य आहार पर्याप्ति आदि को पूर्ण करता है।
4. प्रत्येक नामकर्म- जिस कर्म के उदय से हर एक जीव को अलग-अलग शरीर मिलें।
5. स्थिर नामकर्म- जिस कर्म के उदय से जीव को स्थिर अंगोपांग मिलते हैं...जैसे कि दांत आदि।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /141
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org