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चौदह पिण्डप्रकृतियों का संक्षेप में विहंगावलोकन करवा चुके हैं.....अब आठ प्रत्येक प्रकृतियों की बात समझायेंगे। 2.प्रत्येक प्रकृति
प्रत्येक प्रकृति- जिन प्रकृतियों के उपभेद नहीं होते हैं....उन्हें प्रत्येक प्रकृति कहते हैं। प्रत्येक प्रकृति के आठ भेद हैं।
1. अगुरुलघु नामकर्म- जिसके उदय से शरीर न भारी न हल्कापण महसूस होता है।
2. उपघात नामकर्म- जिसके उदय से शरीर में अवयव ऐसे मिले जिनसे स्वयं को बाधा हो, जैसे कि हथेली में छट्ठी अंगुली आदि।
3. पराघात नामकर्म- जिसके उदय से औरो को प्रभावित कर सके, वैसी आकृति मिले।
4. श्वासोच्छ्वास नामकर्म- जिसके उदय से श्वासोच्छवास वर्गणा को लेकर उसे उच्छवास-नि:श्वास के रूप जीव परिवर्तित करता है। ____5. आतप नामकर्म- जिस कर्म के उदय से स्वयं ठंडा रहकर दूसरों को उष्णतायुक्त प्रकाश देने वाला शरीर मिलें....जैसे सूर्यविमान के रत्न के जीवों का शरीर स्वयं ठंडा रहकर भी दूसरों को गर्म प्रकाश आतप नामकर्म के उदय से देता है। अग्निकाय जीवों का शरीर उष्ण स्पर्श और रक्तवर्ण होने से गर्म प्रकाशवाला परंतु उन जीवों को आतप नामकर्म का उदय नहीं होता है....क्योंकि अग्निकायजीवों का शरीर स्वयं ठंडा नहीं होता है। 6. उद्योत नामकर्म- जिस कर्म के उदय से जीव को
रे कर्म तेरी गति न्यारी..!! /140
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