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________________ 4. संघातननामकर्म जिस कर्म के उदय से जीव, शरीर की रचना करने वाले ऐसे निश्चित प्रमाणवाले पुद्गलों को दंताली की तरह इकट्ठा करता उसके पाँच भेद है1. औदारिक-संघातननामकर्म 2. वैक्रिय-संघातननामकर्म 3. आहारक-संघातननामकर्म 4. तैजस-संघातननामकर्म 5. कार्मण-संघातननामकर्म 5. संघयण नामकर्म जिस कर्म के उदय से जीव को हड्डियों की विशिष्ट रचना प्राप्त होती है। उसके छ: भेद है, अर्थात् वज्रऋषभनाराच आदि संघयण जिस कर्म के उदय से प्राप्त होते हैं, उसे संघयण नामकर्म कहते हैं। उन वज्रऋषभनाराच आदि छ: संघयणों का वर्णन निम्न 1. वज्रऋषभनाराचसंघयण- जिसमें मर्कटबंध की तरह दो हड्डियाँ परस्पर जुड़ी हुई हो....ऊपर एक Solid हड्डी की पट्टी मजबूती से बंधी हुई हो और उसके भी ऊपर एक कील लगी हुई हो....हड्डी की ऐसी विशिष्ट रचना को वज्रऋषभनाराच कहते हैं। रे कर्म तेरी गति न्यारी..!! /132 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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