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________________ 3. बंधननामकर्म जिस कर्म के उदय से ग्रहण किये जा रहे औदारिक आदि पुद्गल पुराने औदारिक आदि पुद्गलों से जुड़ते हैं....उस कर्म को बंधननामकर्म कहते हैं। गोंद और लाख-लक्षारस की उपमा इसे दी गई है। इसके पंद्रह भेद हैं.... 1. औदारिक-औदारिक बंधन नामकर्म 2. औदारिक-तेजस बंधन नामकर्म 3. औदारिक-कार्मण बंधन नामकर्म 4. वैक्रिय-वैक्रिय बंधन नामकर्म 5. वैक्रिय -तैजस बंधन नामकर्म 6. वैक्रिय -कार्मण बंधन नामकर्म 7. आहारक -आहारक बंधन नामकर्म 8. आहारक-तैजस बंधन नामकर्म 9. आहारक - कार्मण बंधन नामकर्म 10. औदारिक - तैजस कार्मण बंधन नामकर्म 11. वैक्रिय -तैजस कार्मण बंधन नामकर्म 12. आहारक - तैजस कार्मण बंधन नामकर्म 13. तैजस-तैजस बंधन नामकर्म 14. तैजस-कार्मण बंधन नामकर्म 15. कार्मण-कार्मण बंधन नामकर्म रे कर्म तेरी गति न्यारी...!!/131 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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