SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चरमशरीरी - उसी भव में मोक्ष जाने वाले जीवों को यह संघयण अवश्यमेव होता है। 2. ऋषभनाराच संघयण- बाकी तो सब कुछ ऊपर मुजब ही होता है, सिर्फ ऊपर वाली कील नहीं होती है। 3. नाराच संघयण- जिसमें सिर्फ मर्कट बंध ही होता है। 4. अर्धनाराचसंघयण- जिसमें एक ओर तो मर्कट बंध होता है, मगर दूसरी ओर दो हड्डियाँ सिर्फ कील से जुड़ी हुई होती है। 5. कीलिका संघयण- जिसमें आमने-सामने की दोनों हड्डियाँ सिर्फ कील से ही जुड़ी हुई होती है। 6. छेवठं संघयण- जिसमें आमने-सामने की दोनों हड्डियाँ एक-दूसरे से सिर्फ छू कर ही रही हो.... अर्थात् एक हड्डी में दूसरी हड्डी सिर्फ फँस कर रही हो.... इस भरत क्षेत्र में रहने वाले आज के सभी लोगों को यही संघयण है....इसीलिये थोड़ा-सा झटका लगा नहीं कि फ्रेक्चर हो जाता है....हड्डी उतर जाती है....लोगों को बार-बार ओर्थोपीडिक सर्जन के यहाँ कतार में खड़ा रहना पड़ता है.....हाडवैद्यों के वहाँ . धक्का-मुक्की सहनी पड़ती है। संघयण छ: है अत: उसके कारणभूत संघयणनामकर्म भी छ: है। 1. वज्रऋषभनाराचसंघयण नामकर्म 2. ऋषभनाराचसंघयण नामकर्म रेकर्म तेरी गति न्यारी...!! /133 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy