SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सशल्यता मन में कामवासना आदि किसी भी प्रकार का शल्य रखकर...उस पाप को छुपाकर प्रायश्चित किया हो तो, उस शल्य के कारण तिर्यंच आयुष्य बँधता है। कमलश्री शिवभूति और वसुभूति नाम के दो भाई थे। बड़े भाई की पत्नी कमलश्री अपने देवर वसुभूति के प्रति आकर्षित हुई। कमलश्री ने अनुचित प्रार्थना की। भाभी की कामवासना देखकर वसुभूति को पूरे संसार से घृणा हो गई....और उसे वैराग्य हो गया। वसुभूति ने गुरुचरणों में जाकर चारित्र अंगीकार कर लिया। ____कमलश्री को पता लगा तो वह और अधिक व्यथित हो उठी...वह आर्तध्यान करने लगी....देवर के प्रति कामराग जो था। मानसिक-वाचिक आलोचना न लेने के कारण तिर्यंच आयुष्य बाँधा और मरकर कुत्ती बनी। एक बार उसी गाँव में वसुमति मुनि आये और गोचरी निकले। कुत्ती ने मुनिश्री को देखा......और पूर्वभव के राग के संस्कारों के कारण वह छाया की भाँति साथ चलने लगी। लोगों ने महाराज का नाम बिगाड़ दिया.......उन्हें शुनीपति (कुत्तीपति) कहने लगे। नजर चुका कर महाराजश्री अन्यत्र चले गये। कुत्ती मुनि को न देख, आर्तध्यान में मरकर वानरी-बंदरी हुई। मुनि को देखकर वह भी साथ-साथ चलने लगी....कुचेष्टाएँ करने लगी। लोग उन्हें वानरीपति कहकर पुकारने लगे। मुनिश्री ने पुन: वो ही तरकीब अपनाई...नजर चुकाकर विहार कर गये। बंदरी आर्तध्यान में मरकर रेकर्म तेरी गति न्यारी...!! /123 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy