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हजार सोनामहोर हाथ में थमा दी.........और कहा- किसी जगह गाड़ दो !
यह मंत्रणा निकृति ने छुपकर सुन ली। उसने जाकर संचया को बात कही...करो सेवा तो मिले मेवा ! दूसरे दिन से दोनों बहुरानियाँ सास की सेवा में लग गई.....कृत्रिम आँसू बहाये....माफी माँगी और सुंदर रूप से सेवा करने लगी।
बुढ़िया ने भोले भाव से सोचा....मरने के बाद सोनामहोर मेरे क्या काम की ? उसने दोनों को जगह बता दी। राज चाहिये था सो मिल गया....
एक दिन सास कहीं बाहर गई हुई थी। दोनों बहुओं ने सोनामहोर निकाल ली और अन्य स्थान पर गाड़ दी। अब सेवा धीरे-धीरे बंद हो गई....सास ने देखा...कहीं गड़बड़ तो नहीं हुई ? 'खेल खत्म, पैसा हजम' सोना महोर गायब थी....!
रूद्रदेव को इस बात का पता चला....वह आग बबूला हो उठा। तीक्ष्ण हथियार से उसने अग्निशिखां पर प्रहार किया....अग्निशिखा मरकर सर्पिणी बनी और उसी घर में घूमने लगी।
निकृति ने सोचा मेहनत मैने की....आधा भाग संचया को क्यों दूँ ? लड्डू में जहर मिलाकर संचया को खिलाया। उधर संचया मरकर कुत्ती बनी और इधर निकृति अंधेरे कमरे में छिपाये गये स्थान पर धन निकालने के लिए हाथ डालती है, सर्पिणी उसे डस लेती है। माया के कारण मरकर निकृति नोलवण बनती है।
कषायों से पूरे घर की तबाही हो गई....निकृति को माया के कारण तिर्यंच योनि में जाना पड़ा।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /122
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