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________________ इस घटना से बोध लेना चाहिये कि देवद्रव्य रकम की तुरंत भरपाई कर देनी चाहिये..... विलंब कभी नहीं करना चाहिये..... वरना, रह गया तो ऋषभदत्त की तरह दर्शन मोहनीय बाँधकर भैंसा - गधा जैसी तिर्यंच योनियों में जाने की नौबत आ जायेगी । चौथा कारण - जिनमूर्ति, जिनप्रतिमा, चैत्य संघ - गुरु- श्रुत ज्ञान आदि के अवर्णवाद - आशातना - निंदा आदि करने से दर्शन मोहनीय कर्म बंधता है। श्री जिनमूर्तिपूजा और दर्शन का निषेध करने वाले सावधान ! आप अपने इस भयंकर अपकृत्य से गाढ दर्शन - मोहनीय कर्म बाँध कर दुर्गति के द्वार स्वयं खोल रहे हैं !! - चारित्र मोहनीय कर्म बंध के हेतु कषाय, हास्यादि, नो कषाय और विषय की पराधीनता से दोनों प्रकार के (कषायमोहनीय और नो कषाय मोहनीय) कर्म है। आय कर्म के विषय में सोचेंगे। * Jain Education International रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 115 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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