SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और पहिनने के वस्त्र (निर्वाह) सिवाय जितना भी द्रव्य मिला देवद्रव्य में डालते हुए संपूर्ण ऋण मुक्त बन गया । तदन्तर उसने खूब पैसा कमाया..... और वह देवद्रव्य का रक्षण करने लगा। नगर में जिनमंदिर बनवाया। दीक्षा ली। विंशस्थानक के प्रथम पद की सुंदर आराधना की और साथ ही जीव मात्र पर करुणा भाव लाया। 'सवि जीव करूँ शासन रसी' की मंगलमयी भावना और तप के बलबूते तीर्थंकर नामकर्म बाँधा। महाविदेह में तीर्थंकर बनकर मोक्ष में पधारे। उपर्युक्त उदाहरण सत्य घटना है। इस पर चिंतन-मनन कर पूरा ध्यान रखना जरूरी है, कहीं हमारे घर में तो अनजान से भी देवद्रव्य का भक्षण तो नहीं हो रहा है ! देवद्रव्य के भक्षण से भयंकर दुर्गति निश्चित है। चंदे का देवद्रव्य जल्दी नहीं भरा तो... ऋषभदत्त श्रावक भुलक्कड़ थे। देवद्रव्य के चंदे में पैसे लिखाये और भूल गये। सेठ को दर्शन मोहनीय बँध गया। एक बार चोरों ने सेठ के घर चोरी की..... और रातों-रात सेठ का काम तमाम कर दिया। सेठ मरकर भैंसा बनें । पशु का भव था....मार-पीट सहनी पड़ती थी ....एक बार मंदिर के काम में उसको लगाया गया। पानी चढ़ाना....उसका काम था। परमात्मा की पूजा देखकर उसे जातिस्मरण ज्ञान हुआ । ज्ञानी के वचन से सेठ के लड़के ने भैंसे को छुड़वाया और एक हजार गुना द्रव्य देकर देवद्रव्य के ऋण से मुक्त किया। अनशन कर भैंसा देवलोक में गया। Jain Education International रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! (114 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy