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प्रवचन-9 आयुष्य कर्म के भेद और बंध हेतु
आज हमें आयुष्य कर्म के चार भेद के बारे में सोचना है1.नरकायुष्यकर्म - जिस कर्म के उदय से जीव को अमुक काल तक नरक में ही रहना पड़े। वह जीव वहाँ से निकल-भागने की खूब इच्छा करता है, मगर वह भाग नहीं पाता.....पल-पल मौत की झंखना करता है, मगर मौत उससे कोसों दूर रहती है....वहाँ की आयु पूर्ण होने . पर ही अगले भव में जीव जा सकता है।
2.तिर्यंचायुष्य कर्म
जिस कर्म के उदय से जीव को अमुक समय तक तिर्यंच योनि में उत्पन्न होकर रहना पड़े....एकेन्द्रिय से लगाकर पशु-पक्षी आदि पंचेन्द्रिय तक सभी इस तिर्यंच योनि में समाविष्ट है।
3. मनुष्यायुष्य कर्म
जिस कर्म के उदय से जीव को अमुक समय तक मनुष्य भव में रहना पड़े......
4. देवायुष्य कर्म
जिसके उदय से जीव को अमुक मर्यादित समय तक देवभव में रहना पड़ता है। आयुष्य पूरा होने पर चाह कर भी चिपके नहीं रह सकते....सीट खाली करनी ही पड़ती है।
रेकर्म तेरी गति न्यारी...!! /116
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