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बीस साल हो गये हैं, पैसे भरे ही नहीं ! भयंकर कर्मों का बँध होता
भाग्यशालियों! आज ही सही...देवद्रव्य की यदि एक पाई भी बाकी निकलती हो तो ब्याज सहित भरपाई करने का दृढ संकल्प कर लीजिये और अपने गाँव में.....अड़ोस-पड़ोस में इस बात को समझाने का मन में निश्चय कीजिये।
वरना, देवद्रव्य के भक्षण से भयंकर दुर्गति होगी....! अपार कष्ट सहना पड़ेगा !! जन्म-जन्मान्तर तक यह पाप पीछा करेगा !!!
देवद्रव्य के भक्षण से पशु बनना पड़ा
देवसेन की माता ने प्रभु को अर्पण किये हुए दीये के प्रकाश में घर का काम किया और धूप के अंगारे से चूल्हा सुलगाया....इस प्रकार देवद्रव्य का उपभोग किया, जिससे देवसेन की माता मर कर ऊँटनी बनी।
(सायं होते ही मंदिर के बाहर मन्दिर के ओटले पर बैठ कर गप-शप लड़ाने वाले सावधान! इस देवद्रव्य का उपभोग कर आपको " भी कहीं ॐ......बनना न पड़े !!)
वह ऊँटनी प्रतिदिन देवसेन के घर के बाहर आकर खड़ी रहती थी... __एक बार देवसेन ने ज्ञानी गुरुभगवंत को इसका कारण पूछा। तब गुरुभगवंत ने देवद्रव्य का अपने घरेलू कार्यों में तुम्हारी माँ ने उपयोग किया....दर्शन मोहनीय कर्म बाँधा और दुर्गति हुई....ऊँटनी का जन्म मिला....ऊँटनी के कान में देवद्रव्य के नाश के वृतान्त की
रेकर्म तेरी गति न्यारी...!! /111
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