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________________ प्रवचन - 8 मोहनीय कर्म के भेद और बंधहेतु मोहनीय कर्म के 28 भेद 1. दर्शन मोहनीय- जो मोहनीय कर्म सम्यग्दर्शन (श्रद्धा) को रोकता है। उसके भेद बतायें जायेंगे। 2. चारित्र मोहनीय - जो मोहनीय कर्म चारित्र - विरति को रोकता है। दर्शनावरणीय के तीन भेद दर्शनावरणीय के तीन भेद हैं- 1. मिथ्यात्व मोहनीय 2. मिश्र मोहनीय और 3. सम्यक्त्व मोहनीय | 1. मिथ्यात्व मोहनीय जिस मोहनीय कर्म के उदयसे वीतराग परमात्मा अरिहंतदेव द्वारा बताये गये तत्वों पर श्रद्धा न हो.... अन्यान्य द्वारा बताई हुई बातों पर विश्वास हो.... अतत्वों पर श्रद्धा हो । 2. मिश्र मोहनीय जिस मोहनीय कर्म के उदय से वीतराग परमात्मा द्वारा बताई हुई बातों पर न तो रूचि हो और न ही अरूचि ! बिल्कुल इन द मिडल !! जैसे - नालिकेर द्वीपवासी आदमी, जिसने कभी अन्न देखा ही न हो... उसको अन्न पर न तो रूचि ही होती है और न ही अरूचि ! Jain Education International रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 104 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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