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जो उपकार को नहीं मानता या भूल जाता है, वह कृतघ्न है। वह भयंकर अशातावेदनीय बंध है।
अब हम मोहनीयकर्म के अवांतर भेद और उनके बँध हेतु
बतायेंगे ।
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रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 103
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