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________________ पाला-पोसा....बड़ा किया....उसे घर से निकालते हैं....याद रखना....जो माता-पिता के दुःख दर्द आँसू पूछता नहीं, उसके आँसू को कोई पूछने वाला नहीं मिलेगा। जो माता-पिता को परेशान करता है, उसे कहीं चैन नहीं मिलेगा। बंगलों के नाम 'मातृआशीष, पितृ-आशीष या मातृ-सदन, पितृ-सदन, मातृ-छाया, पितृ-छाया, माय-मदर, माय-फादर' लिखने मात्र से काम नहीं चलेगा....। हृदय में सद्भाव का दीप जलना चाहिये....। ठाणांग-सूत्र में कहा है कि माता-पिता का ऋण कभी चुका नहीं सकते। Honour thy Mother and Father. -Bible 'मातापित्रोश्च पूजकः' -वेदशास्त्र माता पिता के चरणों में जन्नत है। -कुरान 'मदर इज मदर, बाकी सब अदर' । जननी नी जोड सरवी नहीं जडे रे लोल.... जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी.... स्वर्ग से भी ज्यादा महिमामयी है माँ.... ऐसे उपकारी माता-पिता के उपकारों को सदैव याद रखने वाला कृतज्ञ है, शाता बंध का कारक है। अपनी चमड़ी के जूते बनाकर उनके चरणों में धर दो....तो भी उपकार का बदला चुका नहीं सकते। मात्र उन्हें धर्म के मार्ग पर जोड़े या आगे बढ़ाये तो ही उपकार का बदला चुकाया जा सकता है। रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /102 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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