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________________ 3. सम्यक्त्व मोहनीय जिस मोहनीय कर्म के उदय से आत्मा को वीतराग द्वारा बताई हुई बातों में संशय आदि हो जाय और जिसके उदय में रहते क्षायोपशमिक सम्यक्त्व हो सकता है, मगर क्षायिक सम्यक्त्व कदापि नहीं रहता.... चारित्रमोहनीयकेपच्चीसभेद चारित्रमोहनीय के पच्चीस भेद हैं। सोलह कषाय + नौ कषाय = पचीस। कषाय : जिससे संसार का लाभ हो । कष-संसार आय-लाभ अर्थात् जिससे संसार का परिभ्रमण बढ़े। नो-कषाय : जो कषाय को प्रेरणा करे अथवा कषाय का सहचर हो। - सोलह कषाय चार अनंतानुबँधी कषाय जिसके उदय से एक साल से अधिक और यावज्जीव तक कषाय रहे, उसे अनंतानुबंधी कषाय कहते हैं (याद रखिये, संवत्सर प्रतिक्रमण करने के पहले-पहले यदि आपने मिच्छामि दुक्कडं दे दिला कर कषायों की चलो छुट्टी कर दी तो...ठीक है, वरना आपका कषाय अनंतानुबंधी हो जायेगा...अपनी नोट में लिख लीजिये.....अनंतानुबंधी कषाय वाला व्यक्ति अपने ही हाथों जैनशासन के बाहर हो जाता है।) इस अनंतानुबंधी कषाय के चार भेद हैं....1. क्रोध 2. मान 3. माया 4. लोभ। रेकर्म तेरी गति न्यारी...!! /105 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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