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आगम
(४४)
प्रत
सूत्रांक
[43]
दीप
अनुक्रम
[१४६ ]
श्रीमलयगिरीया नन्दीवृत्तिः
२ २३२ ॥
“नन्दी”- चूलिकासूत्र -१ ( मूलं + वृत्तिः)
मूलं [ ५३ ] / गाथा || ८१... ||
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [४४], चूलिका सूत्र -[१] “नन्दीसूत्र" मूलं एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः
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सङ्ख्येयानि पदसहस्राणि पदाप्रेणेति एकादश लक्षा द्विपञ्चाशत्सहस्राणि इत्यर्थः, द्वितीयं तु व्याख्यानं प्रागिव भावनीयं । से किं तं अंतगडदसाओ ?, अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराई उज्जाणाई चेइआई वणसंडाई समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइ अपरलोइआ इड्डिविसेसा भोगपरिचागा पव्वज्जाओ परिआगा सुअपरिग्गहा तवोवहाणाई संलेहणाओ भत्तपचक्खाणाई पाओवगमणाई अंतकिरिआओ आघविजंति, अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा संखिजा अणुओगदारा संखेजा वेढा संखेजा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेजाओ संगणीओ संखेजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए अट्टमे अंगे एगे सुअक्खंधे अट्ट वग्गा अट्ठ उद्देणकाला अट्ट समुद्देसणकाला संखेजा पयसहस्सा पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा अनंता गमा अनंता पजवा परिता तसा अनंता थावरा सासयकडनिबद्धनिकाइआ जिणपन्नन्ना भावा आधविनंति पन्नविनंति परुविज्जति दंसिजंति निदंसिजंति उवदंसिजंति से एवं आया एवं नाया एवं विन्नाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ, से तं अंतगडदसाओ ८ ॥ (सू. ५३)
अंतकृद्दशा - अंग सूत्रस्य शास्त्रिय परिचयः प्रस्तुयते
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उपासक
दशावि. अन्तक
दशाषि.
यू. ५२-५३
२०
| ॥२३२॥
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