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________________ आगम (४४) प्रत सूत्रांक [ ४७ ] दीप अनुक्रम [१४०] “नन्दी” - चूलिकासूत्र -१ ( मूलं + वृत्ति:) मूलं [ ४७ ] / गाथा ||८९... || मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.... आगमसूत्र -[४४], चूलिका सूत्र -[१] “नन्दीसूत्र” मूलं एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः अवाई बत्तीसार वेणइअवाईणं तिन्हं तेसद्वाणं पासंडिअसयाणं वूहं किया ससमए ठाविज्जइ, सूअगडे णं परित्ता वायणा संखिज्जा अणुओगदारा संखेज़ा वेढा संखेजा सिलोगा संखिज्जाओ निज्जुत्सीओ संखिज्जाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए बिइए अंगे दो सुअक्खंधा तेवीसं अणा तित्तीसं उद्देसणकाला तित्तीसं समुद्देसणकाला छत्तीसं पयसहस्साणि पयणं संखिज्जा अक्खरा अणंता गमा अणंता पजवा परित्ता तसा अनंता थावरा सासयकनिवद्धनिकाइया जिणपन्नत्ता भावा आघविज्जंति परुविजंति दंसिजति निदंसिज्जति उवदंसिजंति, से एवं आया से एवं नाया से एवं विष्णाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, सेतं सूअगडे २ (सू०४७ ) 'से किं तमित्यादि, अथ किं तत्सूत्रकृतं ?, 'सूच पैशून्ये' सूचनात्सूत्रं निपातनाद्रूप निष्पत्तिः, भावप्रधानश्चायं सूत्रशब्दः, ततोऽयमर्थः- सूत्रेण कृतं, सूत्ररूपतया कृतमित्यर्थः, यद्यपि च सर्वमङ्गं सूत्ररूपतया कृतं तथापि रूढि वशादेतदेव सूत्रकृतमुच्यते, न शेषम, आचार्य आह-सूत्रकृतेन अथवा सूत्रकृते 'ण'मिति वाक्यालङ्कारे ठोकः सूच्यते इत्यादि निगदसिद्धं यावत् 'असीयस्स किरियावाइसस्से' त्यादि, अशीत्यधिकय क्रियावादिशतस्य चतुर For Parts Only ~428~ सूत्रकृताङ्गाधिकारः सू. ४७ १० १२
SR No.004146
Book TitleAagam 44 NANDISOOTRA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages514
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size114 MB
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