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________________ आगम “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [-], मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [२७६], भाष्यं [३०...], (४०) प्रत सूत्राक एताः पञ्च निगदसिद्धा एव ॥ २७२-२७६ ॥ एवं तावत्सामान्येन प्रत्रज्यापर्यायः प्रतिपादितः, साम्प्रतमत्रैव भेदेन भगवतां कुमारादिपर्यायं प्रतिपादयन्नाहउसभस्स कुमार पुष्वाणं वीसई सयसहस्सा । तेवढी रजंमी अणुपालेऊण णिक्खंतो ।। २७७॥ अजिअस्स कुमारत्तं अट्ठारस पुष्वसयसहस्साई। तेवपणं रज्जंमी पुष्वंगं चेव बोद्धव्वं ॥ २७८॥ पण्णरस सयसहस्सा कुमारवासो असंभवजिणस्स । चोआलीसं रज्जे चउरंग चेव योद्धव्वं ।। २७९॥ अद्धतेरस लक्खा पुख्वाणऽभिणंदणे कुमारत्तं । छत्तीसा अई चिय अटुंगा चेव रजंमि ॥ २८॥ सुमइस्स कुमारत्तं हवंति दस पुब्वसयसहस्साई । अउणातीसं रजे वारस अंगा य बोद्धच्चा ।।२८१ ॥ पउमस्स कुमारत्तं पुवाणखट्टमा सयसहस्सा । अर्द्धं च एगवीसा सोलस अंगा य रजमि ॥ २८२ ॥ पुब्बसयसहस्साई पंच सुपासे कुमारवासो उ । चउदस पुण रजंमी वीसं अंगा य योद्धव्वा ॥ २८३॥ अट्ठाइज्जा [अबुट्टा उ] लक्खा कुमारवासोससिप्पहे होइ । अर्द्ध छ चियरजे चउवीसंगा य बोडब्बा ॥२८४॥ पण्णं पुब्बसहस्सा कुमारवासो उ पुष्फदेतस्स । तावरजंमी अट्ठावीसं च पुष्वंगा ॥ २८५ ॥ [पणवीससहस्साई पुब्बाणं सीअले कुमारत्तं । ताचा परिआओ पपणासं चेव रज्जमि ॥ २८६ ॥ वासाण कुमारत्तं इगवीसं लक्ख हंति सिजसे । तावइ परिआओ पायालीसं च रजमि ।। २८७ ॥ |गिहवासे अट्ठारस वासाणं सयसहस्स निअमेणं । चउपण्ण सयसहस्सा परिआओ होइ वसुपुज्जे ॥ २८८ ॥ दीप 545454ॐ25-25% अनुक्रम T 945025% www.jandiarary.om मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्ति ~284 ~
SR No.004141
Book TitleAagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1736
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size374 MB
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