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________________ आगम “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [-], मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [२६९], भाष्यं [३०...], (४०) |हारिभद्रीयवृत्तिः विभागः१ प्रत सुत्रांक आवश्यक-हा निगदसिद्धैव, नवरं मूलसूत्रकर्त्तारो गणधरा उच्यन्ते ॥ २६९ ।। गतं गणधरद्वारम् , इदानीं धर्मोपायस्य देशका | इत्येतब्याचिख्यासुराह॥१४॥ धम्मोवाओ पवयणमहवा पुयाई देसगा तस्स । सबजिणाण गणहरा चउदसपुब्बी व जे जस्स ॥ २७॥ सामाइयाइया वा वयजीवणिकायभावणा पढम । एसो धम्मोवाओ जिणेहि सब्वेहि उवइटो १९ ॥ २७१ ॥ । गाथाद्वयमपीदं सूत्रसिद्धमेव ॥२७० ।। २७१॥ गतं धर्मोपायस्य देशका इति द्वारम् , इदानी पर्यायद्वारप्रतिपादनायाहउसभस्स पुब्वलक्खं पुव्वंगूणमजिअस्स तं चेव । चउरंगूणं लक्खं पुणो पुणो जाव सुविहित्ति ॥ २७२ ॥ पणवीसं तु सहस्सा पुव्वाणं सीअलस्स परिआओ। लक्खाई इकवीसं सिजंसजिणस्स वासाणं ॥२७३ ॥ चउपपणं १२ पण्णारस १३ तत्तो अद्धहमाइ लक्खाई १४॥ अड्डाइज्बाई १५ तऔं वाससहस्साई पणवीसं १६ ।। २७४ ॥ तेवीसं च सहस्सा सयाणि अट्ठमाणि अहवंति १७ ॥ इगवीसं च सहस्सा १८ वाससउणा य पणपण्णा १९ ॥ २७५।। अद्धहमा सहस्सा २० अहाइज्जा य २१ सत्त य सयाई २२। सयरी २३ बिचत्तवासा २४ दिक्खाकालो जिर्णिदाणं ।। २७६ ॥ दीप ) अनुक्रम -१ ॥१४०॥ JABERatinintamational मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्ति ~283~
SR No.004141
Book TitleAagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1736
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size374 MB
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