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________________ आगम आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः) अध्ययनं [9], मूलं [-] / [गाथा-], नियुक्ति: [१४३७] भाष्यं [२३०], (४०) - प्रत - तीयमणागयभाव जमस्थिकायाण नस्थि अस्थित्तं । तेन र केवलएK नत्थी व्वस्थिकापतं ॥ १४३७ ।।। कामं भवियसुराइसु भावो सो चेव जस्ध वहति । एस्सो न ताव जायइ तेन र ते दव्यदेवुसि ॥ १४३८ ॥1 दुहओऽणंतररहिया जइ एवं तो 'भवा अणंतगुणा । एगस्स एगकाले भवा न जुज्जति उ अणेगा ॥१४३९॥ दुहओऽणंतरभवियं जह चिट्टइ आउअं तु जं बई । हुन्जियरेसुवि जइ तं दब्वभवा हुज्ज तो तेऽवि ॥ १४४०॥ संझासु दोसु सूरो अदिस्समाणोऽवि पप्प समईयं । जह ओभासह खित्तं तहेव एयंपि नायब्वं ॥१४४१॥ माउयपयंति नेयं नवरं अन्नोवि जो पयसमूहो । सो पयकाओ भन्नइ जे एगपए बहू अस्था २३१॥ (भा०) संगहकाओऽणेगावि जत्थ एगवयण धिप्पंति । जह सालिगामसेणा जाओ वसही (ति) निविट्टत्ति ॥१४४२॥ पज्जवकाओ पुण हुंति पजचा जत्थ पिंडिया बहवे । परमाणुंमिविकंमिचि जह चन्नाई अगंतगुणा ॥१४४३ ॥ एगो काओ दुहाजाओ एगो चिट्ठइ एगो मारिओ।जीवंतो अमएण मारिओतं लवमाणव! केण हेउणा ॥१४४४॥ दुगतिग चउरो पंच व भावा पहुआ व जत्थ वदति । सो होइ भावकाओ जीवमजीवे विभासा उ॥१४४५ ॥ काए सरीर देहे बुंदी य चय उवचए य संघाए । उस्सय समुस्सए वा कलेवरे भत्थ तण पाणू ॥१४४६॥ तत्र 'कायस्स उ निक्खेवो' कायस्य तु निक्षेपः कार्य इति 'वारस'त्ति द्वादशप्रकारः । 'छक्कओ य उस्सग्गे' षट्कश्चोत्सर्गविषयः षट्प्रकार इत्यर्थः, पश्चार्द्ध निगदसिद्धं तत्र कायनिक्षेपप्रतिपादनायाह-नाम ठवणा' नामकायः स्थापनाकायः शरीरकायः गतिकायः निकायकायः अस्तिकायः द्रव्यकायश्च मातृकायः संग्रहकायः पर्यायकायः भार दीप अनुक्रम [३६..] JAMEainturda ANDrayan मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] “आवश्यक" मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्ति: ~15354
SR No.004141
Book TitleAagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1736
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size374 MB
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