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आगम
आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः ) अध्ययनं [9], मूलं [-] / [गाथा-], नियुक्ति: [१४२८] भाष्यं [२२८],
(४०)
प्रत
आवश्यक-काए उस्सग्गंमि य निक्खेवे हुंति दुन्नि उ विगप्पा । एएसि दुण्हंपी पत्तेय परूवणं वुच्छं ॥ २२८ ॥ (भा०५ कायो
'काए उस्सग्गमि य' काये कायविषयः उत्सर्गे च-उत्सर्गविषयश्च एवं निक्षेपे-निक्षेपविषयौ भवतः द्वौ एव विकल्पी- सगांध्ययद्रीया
निकायनिदावेव भेदी, अनयोद्धयोरपि कायोत्सर्गविकल्पयोः प्रत्येक प्ररूपणां वक्ष्य इति गाथार्थः ॥ २२८ ॥ ॥७६६॥ कायस्स उ निक्खेवो बारसओ छओ अ उस्सग्गे । एएसिं तु पयाणं पत्तेय परूवणं बुच्छं ॥१४२९ ॥
नाम ठवर्णसरीरे गई निकायत्थिकार्य दविए य । माउय संगह पजर्व भारे तह भावकोंए य ॥ १४३०॥ काओ कस्सह नाम कीरह देहोवि चुचई काओ। कायमणिओवि बुञ्चइ बद्धमवि निकायमाहंसु ॥१४३१॥ अक्खे घराडए वा कडे पुत्थे म चित्तकम्मे य । सम्भावमसम्भावं ठवणाकार्य बियाणाहि ॥ १४३२ ॥3 लिप्पगहत्थी हत्यित्ति एस सम्भाविया भवे ठवणा । होइ असम्भावे पुण हवित्तिनिरागिई अक्खो ॥१४३३॥ ओरालियवेब्वियआहारगतेयकम्मए चेव । एसो पंचविहो खलु सरीरकाओ मुणेयब्वो ॥ १४३४ ॥ चउमुवि गईसु देहो नेरहयाईण जो स गइकाओ । एसो सरीरकाओ विसेसणा होइ गइकाओ ॥शा(प्र.) जेणुवगहिओ बचइ भवंतरं जचिरेण कालेण । एसो खलु गइकाओ सतेयगं कम्मगसरीरं ॥ १४३५ ।। ॥७६६॥ |निययमहिओ व काओ जीवनिकाओ निकायकाओया अस्थित्तिबहपएसा तेणं पंचत्थिकाया उ॥१४३६॥ जंतु पुरक्खडभावं दवियं पच्छाकडं व भावाओ । तं होइ व्वदबियंजह भविओ दव्वदेवाई ॥२२९॥ (भा०) जइ अस्थिकायभावो अपएसो हुज्ज अस्थिकायाणं । पच्छाकडुव्व तोते हविज दव्वत्थिकाया व ॥२३०॥ (भा०)॥
दीप अनुक्रम
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SINEarami
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] “आवश्यक" मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्ति:
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