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________________ आगम आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः ) अध्ययनं [४], मूलं [सू.] / [गाथा-], नियुक्ति: [१३९७] भाष्यं [२२३...] (४०) प्रत सूत्रांक ४प्रतिकमणाध्य अस्वाध्यायनियुक्तिः भावश्यक- कारणतो ण सुज्झति वा पाओसिएण वा सुपडियग्गिएण पढंति न गेण्हंति, बेरत्तियं कारणओ न गिण्हति न सज्झइ | हारिभ-18वा, पाओसिय अहरत्तेण वा पढेति, तिन्नि वा णो गेण्हंति, पाभाइयं कारणओ न गिण्हइ न सुज्झइ वा बेरत्तिएणेव दिव-1 द्रीया सओ पढंति ॥ १३९७ ॥ इयाणि पाभाइयकालग्गहणविहिं पत्तेयं भणामि७५४|| पाभाइयकालंमि उ संचिक्खे तिन्नि छीयकनाणि । परवयणे खरमाई पावासुय एवमादीणि ॥ १३९८ ॥ व्याख्या वस्था भाष्यकारः स्वयमेव करिष्यति । तत्थ पाभाइयंमि काले गहणविही पडवणविही य, तत्थ गहणविही इमानवकालवेलसेसे उबग्गहियअट्ठया पडिक्कमह । न पडिकमइ वेगो नववारहए धुवमसज्झाओ! (भा०२२४)। व्याख्या-दिवसओ सज्झायविरहियाण देसादिकहासंभवव जणहा मेहावीतराण य पलिभंगवजणवा, एवं सवेसिमणुग्गहहा नवकालग्गहणकाला पाभाइए अणुण्णाया, अओ नवकालग्गहणवेलाहिं सेसाहिं पाभाइयकालग्गाही दीप अनुक्रम [२९] ॥५४॥ कारणतो न शुध्यति वा, पादोषिकेण वा सुपतिजागरितेन पठन्ति न गृह्णन्ति, वैरात्रिक कारणतो न गृहन्धिान शुभपति वा, प्रादोविकारात्रिकाभ्यामेव पठन्ति, श्रीन् वा न गृहन्ति, प्राभातिक कारणतो न गृहाति न शुध्यति बा, बैरात्रिकेणव दिवसे पठस्ति । इदानीं प्राभातिककानप्रहणविधि पृथक भगामि-त्र प्राभातिके काले प्रहणविधिः प्रस्थापनविचित्र-तत्र महणविपिरयं-दिवसे खाध्याय विरहितानां देशादिकथासंभववर्जनाय मेधाविनाभितरेषां काचविपर्जनार्थ, एवं सर्वेषामनुमहापांच नवकालप्राणकालाः प्राभातिकेऽनुज्ञाताः, अतो नवकासपाहणबेलामु शेषासु प्राभातिककासपाही मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] “आवश्यक" मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्ति: ~ 1511~
SR No.004141
Book TitleAagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1736
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size374 MB
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