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________________ आगम (१७) "चन्द्रप्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) प्राभूत [१५], -------------------- प्राभूतप्राभृत [-], ---------- ------ मूलं [८४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१७], उपांग सूत्र - [६] "चन्द्रप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्राक [८४] - से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति ?, तापंच भागे विसेसेति, ता जना णं चंदं गतिसमावणं अभीयी-1 णक्खत्ते णं गतिसमावण्णे पुरच्छिमाते भागाते समासादेति, पुरच्छिमाते भागाते समासादित्ता णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तविभागे मुहुत्तस्स चंदेण सद्धिं जोएति, जो जोपत्ता जोयं अणुपरिपट्टति, जो ६२ सा विप्पजहाति विगतजोई यावि भवति, ता जता ण चंदं गतिसमावणं सवणे णक्खो गतिसमावणे &|पुरच्छिमाति भागादे समासादेति, पुरच्छिमाते भागाते समासादेत्ता तीसं मुहत्ते चंदेण सद्धिं जो जोएति १२ जोयं अणुपरियति जो० २ त्ता विप्पजहति विगतजोई यावि भवइ, एवं एएणं अभिलावणं णेतवं, पण्णसरसमुहत्ताई तीसतिमुहत्ताई पणयालीसमुहत्ताई भाणितबाई जाब उत्तरासादा। ता जता णं चंदं । गतिसमावणं गहे गतिसमावणे पुरच्छिमाते भागाते समासादेति पुर०२त्ता चंदेणं सद्धिं जोग जुजति हा सा जोगं अणुपरिषदृति त्ता विष्पजह ति विगतजोई यावि भवति । ता जया णं सूरं गतिसमावणं अभीगीणक्खत्ते गतिसमावणे पुरच्छिमाते भागाते समासादेति, पुर०२ सा चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते &ारेणं सद्धिं जोपं जोएति २ जोयं अणुपरियति २त्ता विजेते विगतजोगी यावि भवति, एवं अहोरत्ता छ एकवीसं मुहत्ता य तेरस अहोरत्ता बारस मुहुत्ता य वीसं अहोरत्ता तिष्णि मुहुत्ता य सधे भणितबा। जाय जता णं सरं गतिसमावणं उत्तरासाढाणक्खत्ते गतिसमावण्णे पुरच्छिमाते भागाते समासादेति। पु० २ सा वीसं अहोरत्ते तिपिण यमुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएति जो० २ ता जोयं अणुपरियति जो०२/ दीप अनुक्रम [११६] --- - - - ~502~
SR No.004117
Book TitleAagam 17 CHANDRA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages602
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chandrapragnapti
File Size129 MB
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