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आगम
(१५)
प्रत
सूत्रांक
[ ३०१]
दीप
अनुक्रम [५४८]
प्रज्ञापना
याः मल
य० वृत्ती.
॥४९५ ॥
“प्रज्ञापना” - उपांगसूत्र - ४ ( मूलं + वृत्तिः )
दारं [-]
मूलं [ ३०१]
उद्देशक: [-] ... आगमसूत्र [१५], उपांग सूत्र [४] " प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्तिः
पदं [२६],
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..
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छवि एगविह० ९, एवं एते नव भंगा, अवसेसाणं एनिंदियमणूसवज्जाणं तियभंगो जाव वैमाणियाणं, एगिंदियाण सतविधगाय अट्टविहवं, मणूसाणं पुच्छा, गो० ! सवेवि ताव होज सत्तविहबंधगा १ अहवा सत्तविहगंधगा य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य छविहबंधए य४, एवं छविहबंधएणवि समं दो गंगा, एगविहधरणवि समं दो भंगा, अहवा सत्तविहबंधगा व अट्ठविहबंधए य छविहबंधए य चउभंगो १ अहवा सत्तविधगा य अट्टविहबंधए य एगविहबंधगे य उमंगो २, अहवा सत्तविहबंधगा य छविबंध य विबंध यचभंगो ३ अहवा सत्तविहबंधगा य अविबंध य छविबंध व एगविहबंधए य मंगा अङ्क, एवं एते सत्तावीसं भंगा, एवं जहा जाणावरणिअं तहा दंसणावरणिअंपि अंतराइयंपि, जीवे णं भंते ! वेदणिजं कम्मं वेदेमाकति कम्मपगडीतो बंधति १, गो० 1 सत्तविहबंधते वा अट्ठविहांघते वा छविहबंधए वा एगविहबंधए वा अधए वा, एवं मणूसेवि, अवसेसा णारयादीया सत्तविह० अद्वविह० एवं जाव वैमाणिता । जीवा णं भंते । वेदणिजं कम्मं वेदेमाणा कति ० ति १, गो० ! सबेवि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगा य अहवा सत्तविबंधगाय अवि एगवि० छबिहबंधगे य, अहवा सत्तविधगा य अविबंध० एगविहबंध० छविहबंधगा य, अबंधगेणवि समं दो मंगा भाणितवा, अहवा सचविहबंधगा य अहिबंध एगविहबंध • छविबंध य अबंधगे य चभंगो, एवं एए नव भंगा, एगिंदियाणं अभंगतं, नारगादीणं तियभंगा जाव वेमाणियाणं, नवरं मणूसाणं पुच्छा, सविताब हो सचविधगा एगविहबंधगा य अहवा सत्तविहबंधना य एगविहबंधगा य छविबंधते य अट्टविहवं
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~994 ~
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२६ कर्मवेदबन्धपदं
सू. ३०१
॥४९५||