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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२२], --------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [२८५-२८७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२८५-२८७] दीप अनुक्रम [५३१-५३३] विरयस्स णं भंते ! जीवस्स मायावत्तिया किरिया कज्जति ?, गो०! सिय कन्जति सिय नो कज्जति, पाणातिपातविरयस्स णं भंते ! जीवस्स अपचक्खाणवत्तिया किरिया कज्जति ?, गो०! णो इणढे समढे, मिच्छादसणवत्तियाए पुच्छा, गो! णो इणढे समहे, एवं पाणातिपातविरयस्स मणूसस्सवि, एवं जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स मणूसस्स य, मिच्छादसणसहाविरयस्सणं भंते! जीवस्स किं आरंभिया किरिया क. जाब मिच्छादसणवतिया कि० क..,गो! मिच्छादसणसल्लविरतस्स जीवस्स आरंभिया कि० सिय क. सिय नोक०, एवं जाव अपञ्चक्खाणकिरिया, मिच्छादसणवत्तिया नक, मिच्छादसणसल्लविरयस्स ण भंते ! नेरझ्यस्स किं आरंभिया किरिया क० जाव मिच्छादसणवचिया कि० क०१, गो ! आरंभिया कि० क० जाव अपञ्चक्खाणकिरियावि क०, मिच्छादसणवत्तिया किरिया नो क०, एवं जाब थणियकुमारस्स, मिच्छादसणसल्लविरयस्स णं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स एवमेव पुच्छा, गो! आरंभिया कि० क. जाव मायावत्तिया कि० क०, अपचक्खाणकि० सिय कसिय नोक०, मिच्छादसणवत्तिया कि० नो कमणसस्स जहा जीवस्स । वाणमंतरजोइसियवेमा० जहा नेरहयस्स । एतासि णं मंते ! आरंभियाणं जाव मिच्छादसणवत्तियाण य कतरे २ हिंतो अप्पा वा ४१, गो० सवत्थोवाओ मिच्छादसणवत्तियाओ किरियाओ, अपचक्खाणकिरियाओ विसे०, | परिग्गहियातो विसे०, आरंभियातो किरियातो विसे०, मायावत्तियातो विसेसाहियातो (सूत्र २८७ ) ।। पण्णवणाए बावीसतिमं पयं समत्तं ॥ २२ ॥ ~903~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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