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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२२], --------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [२८५-२८७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२८५-२८७] प्रज्ञापनाया: मलयवृत्ती. 3929 २२क्रियापदे हिंसादिविरमणे तुः बन्धश्च सू. २८५-२८६ ॥४४९॥ धगा य २ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविह. अविहबंधए य छविहबंधगा य अबंधए य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविह० अढविधबंधए य छबिहबंधगा ये अबंधगा य४, अहवा सचवि० एमवि० अट्ठवि० छबिहबंधगे य अबंधए य ५, अहवा सत्तविहबंधगा य एगवि० अट्ठविह० छबिहबंधगे य अबंधगा य ६, अहवा सत्तवि० एगविह० अट्ठवि० छविहबंधगा य अबंधए य ७ अहवा सत्तविहबंधगा य एग. अडवि० छविहवं. अबंधगा य ८ एवं एते अट्ठभंगा, सब्वेवि मिलिया सत्तावीसं भंगा भवंति, एवं मण्साणवि एते चेव सत्तावीसं भंगा भाणितबा, एवं मुसावायविरयस्स जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स य मणूसस्स य, मिच्छादसणसल्लविरए णं भंते ! जीवे कति कम्मपगडीतो पंधति , गो! सत्तविहबंधए वा अढविहबंधए वा छबिहबंधए वा एगवि० अबंधए वा, मिच्छादसणसल्लविरए णं भंते ! नेरइए कति कम्मपगडीतो बंधति', गो० सत्तविहवंधए वा अढवि० जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिय०, मणसे जहा जीवे, वाणमंतरजोड़सितवेमाणिते जहा नेरइते, मिच्छादसणसल्लविरया णं भंते ! जीवा कति कम्मपगडीतो बंधति ?, गो० ते चेव सत्तावीसं भंगा भाणितवा, मिच्छादसणसल्लविरया भंते ! नेरड्या कति कम्मपगडीतो बंधति, गो! सवेवि ताव होज सत्तविहबंधगा अहवा सत्तविहबंधगा य अहविहबंधगे य अहवा सचविबंधगा य अढवि० एवं जाव वेमाणिया, णवरं मणूसाणं जहा जीवाणं । (सूत्र २८६) पाणातिवायविरयस्स भंते ! जीवस्स किंआरंभिया किरिया कज्जति जाव मिच्छादसणवत्तिया किरिया कजति ?, गो! पाणातिवायविरयस्स जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कजति सिय नो काति, पाणातिवायविरयस्स णं भंते जीवस्स परिग्गहिया किरिया कजति , गो! णो इण समढे, पाणातिवाय दीप अनुक्रम [५३१-५३३] Scene V ४४९॥ ~902~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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