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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२२], -------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], --------------- मूलं [२८१-२८१-R] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रज्ञापनायाः मलयवृत्ती. प्रत सूत्रांक [२८१२८१R] ॥४४॥ यासम्भव इति, प्युत्सृष्टेषु तु न भवति निवृत्तत्वात्, एत्थ उदाहरणं-वसंतपुरे णयरे अजियसेणस्स रण्णो पडि-IM२२ क्रियाचारगा दुवे कुलपुत्तगा, तत्थेगो समणसहो इयरो मिच्छद्दिही, अण्णया रयणीए रण्णो निस्सरणं संभमतुरंताण पदे सूत्रं तेर्सि घोडगारूढाणं खग्गा पन्भट्ठा, सहेण जणकोलाहलो मम्गिओ न लहइ, इयरेण हसियं-किमण्णं ण होहि ?, २८१ सड्डेण अहिगरणंतिकटु बोसिरियं, इयरे च खग्गग्गाहिणो बंदिग्गहसाहसिएहिं लद्धा, गहिओ अण्णेहिं रायव-N लहो पलायमाणो वावाइओ, तओ आरक्खिएहिं गहिऊण रायसमीवं नीया, कहिओ वुत्तंतो, कुविओ राया, पच्छियं चणेण-कस्स तुम्भे? तेहिं कहियं-अणाहा, कलं चिय, कप्पडिया, एए तम्ह खग्गा कर्हि लद्धत्ति.। पुच्छिएहिं कहियं पडिया इति, तओ सामरिसेण रण्णा भणियं-गवेसह तुरियं मम अणबद्धवेरिणं ईसरपुत्ताणं महापमत्ताणं केसि इमे खग्गेत्ति !, तओ तेहिं निउणं गबेसिऊण विण्णत्तं रणो-सामि ! गुणचंदवालचंदाणमिति, ततो रण्णा पिहं पिहं सद्दावेऊण भणिया-लेह नियखग्गे, एक्केण गहियं, पुच्छिओ रण्णा-कहं ते पणटुंति ?, तेण कहियं जहावितं, कीस न गबिट्ट, भणइ-सामि! तुम्ह पसारण एहमेत्तमवि गवेसामि , सहो नेच्छा, रण्णा पुच्छिओ-कीस न गेण्हसि ?, तेण भणियं-सामि ! अम्हाणमेस ठिई चेव नत्थि जमेवं गेण्हिज्जइ अहिग-1 ४४२॥ रणतणओ, परं संभमेण मग्गंतेणवि न लद्धंति वोसिरियं अतो न कप्पइ मे गिहिउं, तओ रण्णा पमायकारी अणुसासिओ, इयरो विमुक्को, एस दिलुतो इमो य से अत्थोषणओ-जहा सो पमायगम्भेण अघोसिरियदोसेण दीप अनुक्रम [५२७-५२८] SARERatunintennational मूल-सम्पादकस्य स्खलनत्वात् अत्र सूत्र-क्रमांक '२८१' द्वि-वारान् मुद्रितं, तस्मात् मया '२८१-R' इति संज्ञा दत्वा सूत्र-क्रमांक लिखितं ~886~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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