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आगम
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“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२२], -------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [२८१-२८१R] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
२२ क्रिया
प्रत सूत्रांक [२८१२८१R]
या मलब. वृत्ती. ॥४३९॥
पदे प्राणातिपातादि
जीयातो, वाणमंतरजोइसियवेमाणियातो जहा नेरइयातो, जीवेणं भंते ! जीवेहितो कतिकिरिए ?, गो। सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिते सिय अकिरिए, जीवेणं भंते ! नेरइएहितो कतिकिरिए, गोसिय तिकिरिए सिय चउकिरिते सिय अकिरिए, एवं जहेब पढमो दंडतो तहा एसो वितिओ भाणितबो जाव माणियत्ति, जीवा णं भंते ! जीवातो कतिकिरिया , गो. ! सिय तिकिरियावि सिय चउकिरियाविसिय पंचकिरियावि सिय अकिरियावि, जीवा गं भंते ! नेरहयातो कति किरिया, गो! जहेब आदिल्लदंडतो तहेव भाणितबो, जार वेमाणियत्ति, जीवाणं भंते ! जीवहिंतो कतिकिरिया, गो. तिकिरियावि चउकिरियापि पंचकिरियावि अकिरियावि, जीवा गं भंते ! नेरइएहितो कतिकिरिया, गो! तिकिरिया चउकिरिया अकिरिया, असुरकुमारेहितोवि एवं चेव जाब वेमाणिहितो, ओरालियसरीरेहितो जहा जीवेहितो । नेरइए णंमते! जीवातो कतिकिरिए, गो०! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंच०, नेरइए णं मंते ! नेरइयातो कतिकिरिए, गो! सिय तिकिरिए सिय.च०, एवं जाव वेमाणिएहितो, नवरं नेरइयस्स नेरदपहिंतो देवेहिंतो य पंचमा किरिया नस्थि, नेरइया णं भंते ! जीवातो कतिकिरिया, गोसिय तिकि० सिय चउकि० सिय पंचकि०, एवं जाव चेमाणियातो, नवरं नेरइयाओ देवाओ य पंचमा किरिया नथि, नेरइया णं भंते ! जीवहिंतो कतिकिरिया, गो! तिकिरियावि चउकि० पंचकि०, नेरइया गं.भंते ! नेरइएहितो कतिकिरिया, गो। तिकि० चउकि०, एवं जाव बेमाणिएहितो, नवरं ओरालियसरीरोहिंतो जहा जीवेहि, असुरकुमारे ण भंते । जीवातो कतिकिरिए, गो! जहेब नेरइए चत्तारि दंडगा तहेव असुरकुमारेवि चत्वारि दंडगा
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भ्यः कमेवन्धः नारकादिभ्यः क्रियाश्च सू.२८१
दीप अनुक्रम [५२७-५२८]
॥४३९॥
मूल-सम्पादकस्य स्खलनत्वात् अत्र सूत्र-क्रमांक २८१' द्वि-वारान् मुद्रितं, तस्मात् मया '२८१-R' इति संज्ञा दत्वा सूत्र-क्रमांक लिखितं
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