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आगम (१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२०], -------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [२५५-२५६] + गाथा मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२५५
२०अन्तक्रियापदम्
-२५६]
मज्ञापनाया: मलय० वृत्ती. ॥३९॥
गाथा
ण भंते ! अंतकिरियं करेजा, गोयमा! अत्थेगइए करेजा, अत्थेगतिए णो करेजा । एवं नेरइए जाव माणिए । नेरइए णं भंते ! नेरइएसु अंतकिरियं करेजा ?, गोयमा 1 नो इणढे समढे । नेरइया णं भंते ! असुरकुमारसु अंतकिरियं करेजा, गोयमा ! नो इणढे समढे । एवं जाव वेमाणिएसु । नवरं मणसेसु अंतकिरियं करेजत्ति पुच्छा, गोयमा ! अत्थेगतिए करेजा अत्थेगतिए. णो करेजा । एवं असुरकुमारा जाच वेमाणिए । एवमेव चउवीसं २ दंडगा भवन्ति । (सूत्र २५५) नेरइया णं भंते ! कि अणंतरागया अंतकिरियं करेंति परंपरागया अंतकिरियं करेंति, गोयमा ! अणंतरागयावि अंतकिरियं करेंति परंपरागयावि अंतकिरियं करेंति । एवं रयणप्पभापुढविनेरइयावि जाय पंकप्पभापुढवीनेरइया, धूमप्पभापुढपीनेरइयाण पुच्छा, गोयमा ! णो अणंतरागया अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया अंतकिरियं पकरेति, एवं जाव अहेसत्तमापुढवीनेरइया । असुरकुमारा जाच थणियकुमारा पुढवीआउवणस्सइकाइया य अणन्तरागयावि अंतकिरियं पकरेंति परंपरागयावि अंतकिरियं पकरेंति, तेउवाउबेईदियतेईदियचउरिदिया णो अणंतरागया अंतकिरिय पकरेंति परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति । सेसा अणंतरागयावि अंतकिरियं पकरेंति परंपरागयावि अंतकिरिय पकरेंति । (सूत्र २५६) 'नेरइय अंतकिरिया' इत्यादि, प्रथमतो नैरयिकोपलक्षितेषु चतुर्विंशतिस्थानेषु अन्तक्रिया चिन्तनीया । ततोऽनन्तरागताः किमन्तक्रियां कुर्वन्ति परम्परागता वा ? इत्येवमन्तरं चिन्तनीय, ततो नैरयिकादिभ्योऽनन्तरमागताः
दीप अनुक्रम [४९६-४९८]
॥३९६॥
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