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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१७], -------------- उद्देशक: [१], -------------- दारं [-], --------------- मूलं [२३१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[२३१]
दीप अनुक्रम [४६९]
णो तारूवत्ताए जाब णो ताफासत्ताए भुजो भुञ्जो परिणमइ ?, हंता गोयमा ! कण्हलेसा नीललेस्सं पप्प णो तारूबचाए णो तावनचाए णो तागंधचाए णो तारसत्ताए णो ताफासत्ताए भुजो २ परिणमति, से केणढे भंते ! एवं बुच्चइ १, गोयमा ! आगारभावमायाए पा से सिया पलिभागभावमायाए वा से सिया कण्हलेस्सा णं सा णो खलु नीललेसा तत्थ गया ओसकइ उस्सकहवा, से तेणढे मोयमा एवं बुच्चइ कण्हलेसा नीललेसं पप्पणो तारूवत्ताए जाव भुजोर परिणमति, से नूगं भंते ! नीललेसा काउलेसं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुजो २ परिणमति , हंता गोयमा! नीललेसा काउलेसं पप्प णो तारूबताए जाव भुजो २ परिणमति, से केणढे० भंते! एवं खुबह-नीललेसा काउलेसं पप्प णो तारूवत्ताए. जाव शुओ २ परिणमति, गोयमा आगारभावमायाए वा सिता पलिभागभावमायाए वा सिता मीललेस्सा णं सा णो खलु सा काउलेसा तत्थगया ओसकइ उस्सकति वा, से एएणढे०.१, गोयमा! एवं बुचद-नीललेसा काउलेसं पप्प जो तारूवचाए जाव भूजओ२परिणमति, एवं काउलेसा तेउलेसं पप्प तेउलेसा पम्हलेसं पप्प पम्हलेसा मुक्कलेसं पप्प, से नूर्ण भैते ! सुकलेसा पम्हलेसं पण णो तारूवत्ताए जाव परिणमति, हता गोयमा सुक्कलेसा चेव से केण२० मते! एवं बुचति-सुकलेसा जाव णो परिणमति ?, गो०! आगारभावमायाए वा जाव सुकलेस्सा णं सा षो खल सा पम्हलेसा तत्थगया ओसकइ, से तेणद्वेणं गोयमा! एवं चुच्चइ जावणो परिणमइ (सूत्र २३१)पण्णवणाए भगवईए लेसापदे पंचपदेसो। 'कइ णं भंते ! लेस्साओ पन्नत्ताओ' इत्यादि, चतुर्थोद्देशकवत् तावद्वक्तव्यं यावद्वैडूर्यमणिदृष्टान्तः, व्याख्या च
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