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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१७], -------------- उद्देशक: [४], -------------- दारं [-], --------------- मूलं [२२७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२२७]
प्रज्ञापनाया:मलयवृत्ती.
॥३६॥
दीप अनुक्रम [४६५]
मणामयरिया चेव तेउलेस्सा आसाएणं पन्नता, पम्हलेस्साए पुच्छा, मोयमा! से जहानामए चंदप्पभा इ वा मणसिला १७लेश्याइ वा वरसी इवा चरवारुणी इ वा पत्तासवे इ वा पुष्फासवे इ वा फलासवे इ वा चोयासवे इ वा आसचे इ वा महूइ वा पदे उद्देश मेरएइ वा कविसाणए इ या खजूरसारए इ वा मुद्दियासारए इ वा सुपकखोतरसे हवा अडपिणिद्विया इवा जंबुफलकांलिया इ वा चरप्पसचाइ वा [आसला ] मंसला पेसला ईसि ओढवलंबिणी इसि वोच्छेदकहुई ईसि तंवच्छिकरणी उक्कोसमदपत्ता वनेणं उववेया जाव फासेणं आसायणिजा वीसायणिज्जा पीणणिजा विहणिज्जा दीवणिज्जा दप्पणिज्जा मदणिजा सर्वेदियगायपलहायणिज्जा, भवेयारूवा?, गो. जो इणद्वे समढे पम्हलेस्सा एनो इद्वतरिया चेव जाव मणामयरिया चेव आसारण पनत्ता, सुकले० मते ! केरिसिया आस्साएणं पन्नता, गोयमा ! से जहानामए गुले इवा खंडे इवा सकराइ वा मच्छंडिया इ वा पप्पडमोदए इ वा भिसकंदए इ वा पुप्फुचरा इ वा पउमुत्तरा हवा आदंसिया हवा सिद्धत्थिया हवा आगासफालितोवमा इ वा उवमा इ वा अणोवमा हवा, भवेतारूवे, गोयमा ! णो इणढे समहे, सुकलेस्सा एत्तो इद्वतरिया चेव पियतरिया चेव मणामयरिया चेव आसाएर्ण पत्रचा (सूत्र २२७)
'कण्हलेसा गं भंते !' इत्यादि प्रश्नसूत्रं सुगम, भगवानाह-गौतम ! स लोकप्रतीतो यथानामको निम्बो वृक्ष-II |विशेषः निम्बसारो-निम्बमध्यवर्त्यवयव विशेषः 'निम्बछली' निम्बत्वक निम्बफाणितं-निम्बकाथः कुटजोवृक्षविशेषः तस्यैव फलं कुटजफलं तस्यैव त्वक् कुटजछली तस्यैव काथं-कुटजफाणितं कटुकतुम्पी प्रसिद्धा तस्या
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