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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१७], --------------- उद्देशक: [४], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [२२६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२२६]
Katkesek esernerce
दीप अनुक्रम [४६४]
बनेसु' इति पञ्चभिर्वर्णैः शिष्यते यथा शिष्यते तथा तथया इत्यादिना दर्शयति । उक्तो वर्णपरिणामः, सम्प्रति रसपरिणाममभिधित्सुराह
कण्हलेस्सा णं भंते ! केरिसिया आसाएणं पन्नता, गोयमा से जहानामए निचे हवा मिबसारे इ वा निघाल्ली हवा निंबफाणिए इ वा कुडए इ वा कुडगफलए इ वा कुडगछल्ली इ वा कुडगफाणिए इवा कडुगतुंबीइ वा कडुगतुंविफले हवा खारतउसी इवा खारतउसीफले इ वा देवदालीति वा देवदालीपुष्के इ वा भिगवालुंकी हवा मियवालुंकीफले हवा घोसाडए इ या घोसाडिफले इ वा कण्हकंदए इ वा वजकंदए इवा, भवेयारूवे 1, गो. जो इणहे समढे, कण्हलेसा
एतो अणिहतरिया चेव जाव अमणामयरिया चेव आँसाएणं पनत्ता, नीललेसाए पुच्छा, गोयमा ! से नहानामए भगीति वा भंगीरए हवा पाढा इवा [चरिया इवा] चित्तामूलए इ वा पिप्पली इ वा पिप्पलीमूलए इ वा पिप्पलीसुण्णे हया मिरिए इ वा मिरियचुण्णए इवा सिंगवेरे दवा सिंगवेरचुण्णे इवा, भवेयारूवे, गोयमा! णो इणढे समढे, नीललेस्सा एचो जाय अमणामतरिया चेव आसाएणं पत्ता, काउलेस्साए पुच्छा, गोपमा 1 से जहानामए अंबाण वा अंबाडगाण वा माउलिंगाण वा बिल्लाण वा कविद्वाण वा [भजाण वा] फणसाण का दाडिमाण वा पारे बताण वा अपखोडयाण या चोराण वा तियाण वा अपकाणं अपरिवागाणं वनेणं अणुववेयाणं गंधेणं अणुववेयाणं फासेणं अणु०, भवेयारूवे , गोणो इणडे समढे, जाव एत्तो अमणामयरिया चेव काउलेस्सा अस्साएणं पन्नत्ता, तेउलेस्सा णे पुच्छा, गोयमा ! से जहानामए अंबाण वा पकाणं परियावनेणं उववेयाणं पसत्येणं जाप फासेणं जाव एत्तो
| अथ लेश्याया: रस-परिणामं वर्ण्यते
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