________________
आगम
(१५)
प्रत
सूत्रांक
[२२२]
दीप
अनुक्रम [४५९ ]
“प्रज्ञापना” - उपांगसूत्र - ४ ( मूलं + वृत्तिः )
पदं [१७],
उद्देशक: [३],
दारं [-1,
मूलं [२२२]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [१५], उपांग सूत्र [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्तिः
चेवणं तेउलेसे उबवह एवं आउकाइया वणस्सइकाइयावि भाणियवा से नूणं भंते! कण्हलेसे नीललेसे काउलेसे तेउकाइए कण्हलेसेसु नीललेसेस काउलेसेस तेउकाइएस उववज्जइ कण्हले से नीललेसे काउलेसे उबबहह जल्छेसे उबबाद तसे उबबहह ?, हंता गो० 1, कण्ह० नील० काउलेसे तेउकाइए कण्ह० नील० काउलेसेसु तेउकाइएस उबवजह सिय कण्डलेसे उच्चट्टइ सिय नीललेसे उववहति सिय काउलेसे उबबहह सिय जल्लेसे उचवजह तल्लेसे उववहह, एवं वाउकायबेदियतेइंदियचउरिंदियावि भाणियता से नूणं भंते ! कण्हलेसे जान सुफलेसे पंचेंदियतिरिक्खजोणिया कण्हलेसेसु जाव सुकलेसेसु पंचेंदियतिरिक्खजोगिएसु उबवजह १, पुच्छा, हंता गोयमा !, कण्हलेसे जाव सुकलेस्से पंचेंदियतिरिक्खजोणिए कण्हलेसेसु जाव सुक्कलेसेसु पंचदियतिरि० उबव० सिय कण्हलेसे उववहह जाब सिय सुकलेसे उचबट्टद सिय जल्लेसे उचवज्जइ तल्लेसे उबबहह । एवं मणूसेवि । वाणमंतरा जहा असुरकुमारा जोइसियवैमाणियावि एवं चेष, नवरं जस्स जल्लेसा, दोन्हचि चयणंति भाणियां (सूत्रं २२२ )
'नेरहए णं भंते ! नेरह उबवजद्द' इत्यादि, अस्य चायमभिसम्बन्धः -- द्वितीयोदेशके नारकादीनां लेश्यापरिसङ्ख्यानं अल्पबहुत्वं महर्द्धिकत्वं चोक्तं, इह तु तेपामेव नारकादिजीवानां तास्ता लेश्याः किमुपपातक्षेत्रोपपन्नानामेव भवन्ति उत विग्रहेऽपि इत्यस्यार्थस्य प्रतिपादनार्थे प्राक् नयान्तरमाश्रित्य नारकादिव्यपदेशं पृच्छति 'नेरइए 8 भंते! नेरइपसु उबवजह अनेरइए नेरइएस उबवज्जर' इति, इदं च प्रश्नसूत्रं सुगमं, भगवानाह गौतम !
अथ लेश्याया: उपपातक्षेत्रम् प्ररुप्यते
For Parts Only
~709~